(राग हमीर-ताल त्रिताल)
माता-पिता-सुसेवक के घर, पतिव्रता नारी के घर।
इन्द्रिय-विजयी नरवरके घर, अतिथि-परायणके शुचि घर॥
हक इमानकी खानेवाले सच्चे व्यापारीके घर।
करते सदा निवास आप प्रभु, समझ उन्हें अपने ही घर॥
(राग हमीर-ताल त्रिताल)
माता-पिता-सुसेवक के घर, पतिव्रता नारी के घर।
इन्द्रिय-विजयी नरवरके घर, अतिथि-परायणके शुचि घर॥
हक इमानकी खानेवाले सच्चे व्यापारीके घर।
करते सदा निवास आप प्रभु, समझ उन्हें अपने ही घर॥