Last modified on 14 मार्च 2013, at 00:28

मानचित्र की लकीरों को स्वीकार नहीं करती भूख / दिनकर कुमार

मानचित्र की लकीरों को स्वीकार नहीं करती भूख
इसीलिए लाँघकर आते हैं वे सीमा को नदी को पर्वत को
इसीलिए संतरियों को रिश्वत में देते हैं अंतिम जमा-पूंजी
महिलाएँ सौंप देती हैं अपना शरीर

मानचित्र की लकीरों को स्वीकार नहीं करती भूख
भले ही अघाए हुए लोग बनाते हैं संकीर्ण दायरे
तय करते हैं कठोर नियम और राजनीति के प्रावधान
पहचान-पत्र, राशन-कार्ड, नागरिकता के प्रमाण-पत्र

मानचित्र की लकीरों को स्वीकार नहीं करती भूख
इसीलिए कितने लोग अपना ठिकाना खोकर
भटकते रहते हैं बंजारे की तरह मनुष्य होकर भी खोकर
मानवीय मर्यादा को कीट-पतंगों की तरह ।