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मान के हर प्रश्न पर / यश मालवीय

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मन की ऋतु बदली
तुम आए !
रात हुई उजली
तुम आए !

ओस कणों से लगे बीतने
घंटे आधे-पौने
बाँसों लगे उछलने फिर से
प्राणों के मृग-छौने
फूल हुए-तितली
तुम आए !

लगी दौड़ने तन पर जैसे
कोई ढीठ गिलहरी
दिये जले रोशनी नहाई
पुलकी सूनी देहरी
लिए दही-मछली
तुम आए!

आँगन की अल्पना सरीखे
गीत सजे उपवन में
नंगे पाँव टहलने निकले
दो सपने मधुवन में
हवा करे चुगली
तुम आए !