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मिट्टी दा बावा (1) / पंजाबी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

--इस लोकगीत में एक पत्नी अपने परदेसी पति को याद कर रही है। अभी उसके कोई संतान भी नहीं है तो वो खुद को बहुत अकेला महसूस करती है।--

मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं
उत्ते चा दिन्नी आं खेसी
वतनां वाले माण करन
की मैं माण करां परदेसी
मेरा सोहणा माही, आजा वे

बूहे अग्गे लावां बेरीआं
गल्लां घर-घर होंण तेरीआं ते मेरीआं
वे तू शकल दिखा जा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे

बूहे अग्गे पाणी वगदा
साडा कल्लआं दा जी नईओं लगदा
सानूं गल नाल लाजा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे

मिटटी से मैं बच्चा बनाती हूं
उसे कंबल उढ़ाती हूं
जिनके पति साथ हैं, वो खुश हों
मेरा पति तो परदेसी है
मेरे सुँदर माही, आजा वे

घर के सामने बेरी का पेड़ लगाती हूँ
हर घर में हमारी बातें होती हैं
आकर अपना चेहरा दिखा जाओ
मेरे सुँदर माही, आजा वे

घर के सामने पानी बहता है
मेरा अकेले मन नहीं लगता
मुझे सीने से लगा लो
मेरे सुँदर माही, आजा वे