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मिट्टी से जुड़ी आकांक्षाएं / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
अपने हाथों गढ़े आकार में
मिट्टी से जुड़ी तुम्हारी
आकांक्षाएं पढ़ लेता है कुम्हार
हवा और धूप
उसके चाक को स्पर्श कर
आगे निकल जाती हैं
खुले पार्क में
हरी घास पर बैठे
युगल प्रेमियों के आसपास
गुनगुनाती मंडराती हैं
उनकी नई-नई आंखों में
कई-कई मुस्कान छोड़ जाती हैं
काश वे तुम्हारे चाक पर
कुछ देर ठहर जातीं
उसकी धुरी पर
नाचतीं गुनगुनातीं
हमारी छोटी-मोटी चाहतों में
घूम रही मिट्टी से मिल कर
नया कोई आकार गढ़ जातीं
जिसमें कुम्हार
क्षण भर के लिए
तुम्हारी नहीं
अपनी आकांक्षाओं का
चेहरा देख मुस्कुराता