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मिसप्रिन्ट / अशोक शुभदर्शी

Kavita Kosh से
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ई मिसप्रिन्ट छेकै
ठीक नै छै हल्का में लेना
कोनोॅ मिसप्रिन्ट केॅ

यें उजागर करै छै
व्यवस्था केरोॅ कमी आरोॅ चूक केॅ
कहियोॅ-कहियोॅ तेॅ ई आबी जाय छै पकड़ोॅ में
आसानी सें
जबेॅ कोय मिसप्रिन्ट आबी जाय छै
पकड़ोॅ में पाठकोॅ के
तबेॅ कोय दुखोॅ केॅ बात नै होय छै
कैन्हें कि तबेॅ ई अर्थ नै बदलै लेॅ पारै छै
चीजोॅ के
पाठक पढ़ी लै छै सुधारी केॅ
लेकिन कहियोॅ-कहियोॅ ई छपलोॅ होय छै
एन्होॅ सफाई सें कि
ई पकड़ोॅ में नै आवै छै
आरोॅ पाठक नै पड़ै छै द्वन्द्वोॅ में
ऊ मिसप्रिन्ट एगोॅ गलत अर्थ लैकेॅ

बहुतेॅ गहराई तक चीजोॅ के साथ होय जाय छै
तबेॅ चीजोॅ केॅ बदललोॅ अर्थ केरोॅ बारेॅ में
संदेह नै होय छै पाठकोॅ केॅ

कहियोॅ-कहियोॅ
लेखकोॅ केॅ विश्वसनीय नामोॅ केॅ साथ
अर्थ बदली देला पर भी
ग्राह्य होय जाय छै ई मिसप्रिन्ट
तबेॅ खाली लेखके भौचक्का होय छै
ई मिसप्रिन्ट देखी केॅ
थोड़ोॅ अटपटा अर्थ देला पर भी
लेखकोॅ केॅ विश्वसनीय नाम आबी जाय छै
पाठकोॅ केॅ साथ नेॅ
आरोॅ ओकरोॅ कमी छिपी जाय छै

कहियो-कहियो
प्रिन्टिग कर्मचारी जबेॅ पाठक होय जाय छै चीजोॅ के
ऊ समझै लेॅ नै पारै छै लेखकोॅ केॅ
ऊ हेराफेरी करी बैठै छै शब्दोॅ के
चीजोॅ केॅ आखिरी प्रिन्टोॅ केॅ पहिनै
तबेॅ गड़बड़ होय जाय छै बहुते कुछ
रचना केरोॅ मानोॅ बदली जाय छै तबेॅ
एतना कि
पूरा परिदृश्य बदली जाय छै

कहियो-कहियो
दुनिया में जहाँ चलना चाहियोॅ गोली
वहाँ नै चलै छै
मतुर
वहाँ चलै लागै छै
जहाँ नै चलना चाहियोॅ
ई गलत जेकरोॅ भी कारण सें होय छै
दुनिया उजड़ी जाय छै ओकरोॅ
जेकरोॅ नै उजड़ना चाहियोॅ

कहियो-कहियो
साजिस केॅ तहत करलोॅ जाय छै मिसप्रिन्ट
अच्छा नै होय छै
कोनोॅ भी तरह केॅ मिसप्रिन्ट केॅ सहन करना
सहन केॅ प्रक्रिया बदली दै छै
मिसप्रिन्ट केॅ प्रचलन में

मिसप्रिन्ट केॅ सही लैकेॅ ही ई नतीजा छेकै
दुनिया केॅ ई लगबोॅ
कोनोॅ मिसप्रिन्ट जेसनों ही

तैयारी चली रहलोॅ छै दुनिया में
बड़ोॅ पैमाना पर मिसप्रिन्ट के ।