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मुँह न मिलें / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
एक सुरंग पूरब से
दूसरी पच्छिम से
एक जन्म की ओर से
दूसरी मृत्यु की ओर से आ रही है
दोनों सुरंगों के जब तक मुँह न मिल जाएँ
तभी तक सुरक्षा है
मैं इंजिनियरिंग नहीं जानता शब्द-भेदन जानता हूँ
चाहता हूँ जन्म से मृत्यु की ओर आने वाली
सुरंग का लेबल गड़बड़ा जाए
दोनों अगर मिल गए बारूदी सुरंगों की तरह
इंजिनियरिंग भले ही सफल हो जाए
जीवन विफल और विरूप हो जाएगा ।