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मुक्तक-31 / रंजना वर्मा

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अपनों की' किसी जान का जंजाल मत बनो
सन्तोषधन है पास में कंगाल मत बनो।
वाणी बड़ी अनमोल है बोलो संभाल कर
रख ध्यानरत्न साथ में वाचाल मत बनो।।

रंग बिरंगे फूल खिले धरती ने ली अंगड़ाई रे
फूल फूल पर कली कली पर नयी जवानी आयी रे।
हर दिल है जवान हो बैठा सब के मन हैं झूम उठे
अंग अंग से रंग चुअत है अल्हड़ होली आयी रे।।

भँवर में रहूँ तो भी नैया न दे
भले पोत डूबे खिवैया न दे।
रहूँ बाँझ यह भी है मंजूर पर
मुझे गुरमेहर या कन्हैया न दे।।

बिना भक्ति जीवन सँवरता नहीं है
नशा मोह का पर उतरता नहीं है।
हुई जिंदगी लोभ ममता के वश में
मरे जीव पर लोभ मरता नहीं है।।

घटा गम की ये मन गगन से हटे ना
बिना हमसफ़र जिंदगानी कटे ना।
गुजरते न दिन औ न कटती हैं रातें
घनी बदलियाँ हैं गगन से छँटे ना।।