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मुक्तक-44 / रंजना वर्मा

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जिंदगी मौज है रवानी है
मंजिले मौत की दिवानी है।
ये तो है दर्द का रिसाला इक
अश्क़ में भीगती कहानी है।।

देने लगे हैं लोग गालियों को दाद क्यों
पहले कभी चुनाव के या उसके बाद क्यों।
आजाद हिंद देश में आजाद सभी हैं
फिर रोज़ ही होने लगा दंगा फसाद क्यों।।

कभी दुश्मनी की वजह प्यार क्यों हो
पनपती मुहब्बत तो तक़रार क्यों हो।
फली नफरतों की . फसल आज ऐसी
तो फिर ताज सी कोई मीनार क्यों हो।।

आओ मिलकर यार करें हम सब भंगड़ा
काहे की तकरार और कैसा रगड़ा।
भूलो नफ़रत की बातें बस प्यार करो
अब न लड़ो आपस में यों न करो झगड़ा।।

मन ने जिस को निशि वासर चाहा अवराधा
उस की स्मृति में अब आज न कोई बाधा।
मोहन चाहे जहाँ रहा जिस भी स्थिति में
मन तो रटता रहा सदा ही राधा राधा।।