भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुक्तक-55 / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अब धरम की किताब क्या करना
जिंदगी बेहिसाब क्या करना।
जिन सवालों का न कोई मतलब
जान उन का जवाब क्या करना।।
सारे ताने बवाल सहता है
ये हमेशा से चुप ही रहता है।
जो है जैसा वही दिखा देता
आईना झूठ नहीं कहता है।।
बाग में उड़ने लगीं फिर तितलियाँ
फूल से करता भ्रमर है मस्तियाँ।
उड़ चलीं देखो पवन के पंख पा
प्यार से हमने लिखीं जो चिट्ठियाँ।।
जमाने में माता सी ममता नहीं
पिता के किये की भी समता नहीं।
किये कर्म इन के भुला कर जिये
किसी मे कहीं ऐसी क्षमता नहीं।।
कन्हैया रूठ तू जाता किये मनुहार जाती हूँ
हमेशा नाम ले तेरा विपद से पार जाती हूँ।
सदा तू जीत लेता है हमारा दिल अदाओं से
सलोने साँवरे तुझ से सदा मैं हार जाती हूँ।