मुखाग्नि / साधना जोशी
अब खबरें आती है,
बेटी ने माता पिता को मुखाग्नि दी ।
परम्पराओं की एक और चादर के,
आवरण को उखाड़ फेंका है।
जिसके कारण,
लाखों बेटियाँ धरती में आने स,े
पहले ही पहचान करा के,
मृत्यु को दान की जाती हैं ।
एक पुत्र पर कई पुत्रियां,
कुर्बान की जाती हैं,
एक आने वाले झूठ के लिये ।
क्या बेटा अपने मां बाप की,
सेवा निरन्तर कर रहा है ।
आज के प्रवासी पुत्र,
मरने के बाद भी
नहीं पहुँच पाते हैं,
मां बाप के पास ।
फोन पर भी,
बात करने का,
समय नहीं है ।
पुत्र की चाह में,
हजारों कत्ल,
मां बाप, किया करते हैं ।
बृद्धावस्था में,
वेदखल कर दिये जाते हैं ।
अपने ही घर से,
एक पुत्र और पुत्रवधू,
के द्वारा ।
पुत्र-पुत्री का भेद मिटाकर,
सन्तान का सुख चाहिए,
उस सन्तान को,
संस्कार और षिक्षा,
का हथियार देना है ।
एक भावों से भरा,
हृदय देना है,
दुसरे के कश्ठों को,
दूर करने की,
षिक्षा देनी है ।
किसी के आंषू को,
पोछने की चाह रखे ।
कर्त्तव्य निश्ठता और दृढ़ता का,
वल देना है ।
जो घर मंे खुषियों की रोषनी फैलाये,
अखण्ड ज्योति को जलाये,
वही सन्तान है,
चाहे पुत्र हो या पुत्री।