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मुझमें क्या आकर्षण / मुकुट बिहारी सरोज
Kavita Kosh से
मुझमें क्या आकर्षण जो तुम अपनी गली
छोड़कर आओ
मेरे पास नहीं अपना घर
फिरता रहता हूँ आवारा
और एक तुम हो कि गाँव में
सब से ऊँचा महल तुम्हारा
कैसे दूँ आदेश उमर को, उनसे ज़रा
होड़कर आओ
लिखा नहीं पाया क़िस्मत में
तुम जैसी सम्पन्न जवानी
तुमने तृप्ति ग़ुलाम बना ली
मेरी प्यास माँगती पानी
तुम्हें ज़रूरत नहीं कि, जो तुम अपने नियम
तोड़कर आओ
भार मुझे ही अपना जीवन
तुम ही ठेकेदार चमन के
तुमने साख भुनाली अपना
जुड़े न मुझसे दाम कफ़न के
मंदिर में अब ऐसा क्या है जो तुम हाथ
जोड़कर आओ