मुझसे ईश्वर न सधा होता गया अशिष्ट
अगर किसी का नामजप किया तो रूपा बिष्ट
आमफ़हम कविता लिखी कौन पढ़ेगा क्लिष्ट
यहाँ बहुत उत्पात है निकलो सारे शिष्ट
मिलने पर टेढ़े लगें दिखें ज़रा-सा धृष्ट
ऐसे हम उखड़े कहीं दिखते हुए अदृष्ट
चलें मंच पर आप सब जितने विषम वसिष्ठ
बैकबेंच से मारते सीटी परम कनिष्ठ
चाह नहीं निर्वाण की न उपास्य न इष्ट
एकरैखिक क्यों हो सकूँ पैदाइशी संश्लिष्ट
पता नहीं होगा अभी कितना और अनिष्ट
जितना हो फ़ासिस्ट तुम उतना हम कम्युनिस्ट