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मुझे तेरा कब आशियाना मिलेगा / हरिराज सिंह 'नूर'
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मुझे तेरा कब आशियाना मिलेगा?
किसी और का ही ठिकाना मिलेगा।
सभी कुछ मिलेगा मगर ये हक़ीक़त,
किसी को न गुज़रा ज़माना मिलेगा।
करो गुफ़्तगू तो मिरे पास आकर,
तुम्हें रूठने को बहाना मिलेगा।
जिसे पढ़ के अश्कों की बरसात होगी,
मुझे दर्द का वो फ़साना मिलेगा।
वो दामन को अपने सँभाले तो कैसे?
ये मौसिम कहाँ आशिक़ाना मिलेगा।
जिसे लूटने की वो ख़्वाहिश रखेंगे,
उन्हें क्या कहीं वो ख़ज़ाना मिलेगा।
जिसे सुन के दिल ख़ून रोएगा पैहम,
वो क्या ‘नूर’ क़िस्सा यगाना मिलेगा?