मुन्नू मिसिर का आलाप / विशाल श्रीवास्तव
बहुत पक्का गला है मुन्नू मिसिर का
अद्भुत गाते हैं मुन्नू मिसिर
फिर भी भव्य सभाओं में नहीं जाते मुन्नू मिसिर
कहीं किसी किताब में नहीं छपा है उनका नाम
उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं
अयोध्या के नये घाट पर गली जैसा कुछ
गली जैसे कुछ में मोड़ जैसा कुछ
मोड़ जैसे कुछ पर पीपल एक पुराना
वहीं कुछ-कुछ घर जैसा
और भीतर झुलनी खटिया पर मुन्नू मिसिर
छोटी कोठरी में फैला मुन्नू मिसिर का अथाह एकान्त
बातें करता रहता उनके तरल अंधेरे से
जब बहुत कम कुछ याद रहता है मुन्नू मिसिर को
जैसे वे भूल जाते हैं कि वे शाकद्वीपीय हैं या सरयूपारीण
या फिर कितने साल हुए उन्हें रिटायर हुए
तब उनसे ज्यादा दु:ख सामनेवाले को होता है
कभी-कभी याद आ जाता है उन्हें कोई विचलित राग
कोठरी के अंधेरे में तब टिमटिमाता है
उनके बुजुर्ग गले का सुर
चारपाई का सरकता ढीला निवाड़
डगमगाता है एक प्राचीन हारमोनियम
सीली कोठरी में सन्न-सन्न हवा दु्रत
सांवली बिटिया बारती है एक अरूणाभ ढिबरी
रौशनी को परनाम कर आलाप लेते हैं मुन्नू मिसिर
साधते हैं एक साथ सुर और अपनी चिरन्तन खांसी को
शहर के उदास पीलेपन को मुग्ध करता है
उनका खरखराता सधा गला
गाना धीमे से शामिल होता है दुनिया में
दुनिया से अचानक थोड़ा दूर जाते हैं मुन्नू मिसिर
वे अपने दुखों से दूर जाते हैं इस तरह
अपने सुरों की नाव पर चढ़ वे घूम आते हैं नदी पार
कभी उनके साथ होते हवा में शामिल
तैरते रहते तमाम प्रतिबन्धित जगहों के ऊपर
कभी दुबक जाते किसी जीर्ण प्राचीन खिड़की पर
कान लगाकर सुनते उसकी जर्जर कुण्डी का संगीत
फिर वे जाते टेढ़ी बाज़ार अपने सुरों के साथ समोसा खाने
कहकहे लगाते उनके कन्धों पर रखकर हाथ
थककर लौटते अंतत: अपनी उसी संकरी गली में
विलम्बित आलाप में याद करते जीवन का अवरोह
नष्ट छन्द नष्ट गद्य नष्ट संगीत
जीवन एक बहदहवास भौंरे की चीख जितना शोर
जीवन डूबती झलमल झपल रौशनी
अचानक खांस पड़ते हैं मुन्नू मिसिर
हारमोनियम के कोने से छिल जाती है कुहनी
एक ताज़ा दर्द सम्मिलित होता है
मुन्नू मिसिर के आलाप में