मुरली सुनत बाम काम-जुर लीन भई
धाई धुर लीक सुनि बिधीँ बिधुरनि सौँ ।
पावस न दीसी यह पावस नदी सी फिरै
उमड़ी असँगत तरँगित उरनि सौँ ।
लाज काज सुख साज बँधन समाज नांघि
निकसीँ निसँक सकुचैँ नहिँ गुरनि सौँ ।
मीन ज्यों अधीनी गुन कीनी खैँच लीनी देव
बंसी वार बंसी डार बँसी के सुरनि सौँ ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।