Last modified on 11 जुलाई 2015, at 14:59

मुहब्बत की हीर / इमरोज़ / हरकीरत हकीर

मुहब्बत से कोई रांझा हो सकता है
कला से कोई शायर
पर कला से कोई रांझा नहीं हो सकता
शायर की नज्में
शायर की शायरी क्यों नहीं बनती
शायर की ज़िन्दगी
ज़िन्दगी की खूबसूरती
शायर की कला ही है शायरी लिखने की
सोचता रहता हूँ कि किसी तरह
शायरी की कला भी
जीने की कला खूबसूरत जीने की कला हो जाये
सोच सच भी तो हो जाती है
इक बार अपनी इस सोच को
सच होते मैंने भी देखा है और सब ने भी
इक खूबसूरत शायरा को जब मुहब्बत हुई
उस की शायरी और खूबसूरत हो गई
और उसकी ज़िन्दगी उसकी शायरी से भी खूबसूरत
मुहब्बत के साथ कोई हीर भी हो सकती है
और शायरा भी...