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मेरठ-3 / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सुबह से रो रही है चिड़िया
एक और चिड़िया
बाज ने उजाड़ दिया है
उसका घोंसला
कुछ बच्चों को चीथ डाला है
कुछ सहमे हुए दरख़्तों पर बैठे हैं
उन पर बन्दूक की आँख
लगी हुई है
मैं उस चिड़िया को बचाना
चाहता हूँ
कितना अच्छा हो मेरा घर
बन जाए उसका घोंसला