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मेरा तन भूखा, मन भूखा / हरिवंशराय बच्चन

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मेरा तन भूखा, मन भूखा!

इच्छा, सब सत्यों का दर्शन,
सपने भी छोड़ गये लोचन!
मेरे अपलक युग नयनों में मेरा चंचल यौवन भूखा!
मेरा तन भूखा, मन भूखा!

इच्छा, सब जग का आलिंगन,
रूठा मुझसे जग का कण-कण!
मेरी फैली युग बाहों में मेरा सारा जीवन भूखा!
मेरा तन भूखा, मन भूखा!

आँखें खोले अगणित उडुगण,
फैला है सीमाहीन गगन!
मानव की अमिट विभुक्षा में क्या अग-जग का कारण भूखा?
मेरा तन भूखा, मन भूखा!