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मेरा मज़हब यही सिखाता है / सलीम रज़ा रीवा

मेरा मज़हब यही सिखाता है
सारी दुनिया से मेरा नाता है

ज़िन्दगी कम है बाँट ले खुशियाँ
दिल किसी का तू क्यूँ दुखाता है

हर भटकते हुए मुसाफ़िर को
राह सीधा वही दिखाता है

चहचहाते हुए परिन्दों को
कौन दाना यहाँ चुग़ाता है

दुश्मनों के तमाम चालों से
मेरा रहबर मुझे बचाता है

दोस्त उसको ही बस कहा जाए
मुश्किलों में जो काम आता है

दुश्मनों से "रज़ा" बड़ा है वो
रास्ते में जो छोड़ जाता है