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मेरा मित्र / मोहन साहिल
Kavita Kosh से
कभी ठहर जाती है दृष्टि
कानों में गूंजती हैं भयानक आवाज़ें
भीड़ नोच डालती है भीड़ को
सारा गौरव नीचता में बदल जाता है
और मैं
मित्र के कहने पर जबरन आंखें बंद किए
खोजता हूँ शून्य
सब कुछ देखने के बाद
शांत रहना कठिन है
सब कुछ होने देना और प्रतिक्रियाहीन रहना
दुस्साहस है
दरअसल निवार्सन है मेरे मित्र का अध्यात्म
रेल या बम विस्फोट में मरे लोग
उस पर कोई असर नहीं करते
भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता देखकर
दहलता नहीं वह विरोध नहीं करता
पूछता फिरता है सत्य की परिभाषा
जो सुविधाजनक लगे वही सत्य है उसके लिए
भीतर युद्धरत मेरा मित्र
दीखता है बाहर से शांत।