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मेरी देह / सुकीर्थ रानी / सुधा तिवारी
Kavita Kosh से
बेशुमार झाड़ियों से घिरे एक पहाड़
से बहती है एक नदी,
दरख़्तों की रसभरी डालियाँ झुकती हैं
इसके किनारों पर
छूते हुए पानी का तल ।
अदरक के स्वाद पगे फूल
बिखेरते हैं अपने बीज
चटकाकर अपनी नाजुक खाल
पत्थर के कोटर से छलकता है पानी
और चोटी के कगार से
बह उठता है झरना ।
शिकार को निपटा चुका एक बाघ
खून लगे मुँह को तर कर रहा है
तेज़ बहती जलधार में ।
नीचे उतरते ही
किसी ज्वालामुखी के खुले मुँह से
सुर्ख़ राख बिखरती है ।
घड़ी की दिशा में घूमता एक भँवर
आन्दोलित किए है धरती को ।
रात की तरावट में डूबती है
दिन की गर्मी ।
आख़िर में प्रकृति तब्दील हो जाती है
मेरी स्थिर पड़ी देह में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी