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मेरी हक़ीक़त ज़र्रा हूँ / बिरजीस राशिद आरफ़ी

मेरी हक़ीक़त ज़र्रा हूँ
लेकिन मैं ख़ुद दुनिया हूँ

देख मुझे तू याद न आ
आज मैं घर में तन्हा हूँ

तू तो ताजमहल है यार
मैं तो बहती जमना हूँ

रेगिस्तान में प्यासा था
घर आकर भी भूखा हूँ

हम दोनों ही इन्साँ हैं
तू महँगा मैं सस्ता हूँ

मैं कितना मजबूर हूँ आज
क्योंकि घर का मुखिया हूँ

उनसे मेरा क्या रिश्ता?
वो बिस्तर मैं तकिया हूँ

पाँव तेरे कैसे धोता?
मैं तो रेत का दरिया हूँ

सदियों का अहवाल<ref>विवरण</ref> न पूछ
मैं तो मुवर्रिख़<ref>इतिहासकार</ref> लम्हा <ref>क्षण</ref>हूँ

आने वाली नस्ल पढ़े
मैं पत्थर पर लिक्खा हूँ

तेरे सितम पर उसका करम
देख मैं अब तक ज़िन्दा हूँ

ख़ाली हाथ न लौटूँगा
तेरे दर का सजदा हूँ

‘राशिद’ मेरे सब्र को देख
चाहूँ तो रो सकता हूँ

शब्दार्थ
<references/>