Last modified on 22 जुलाई 2013, at 00:57

मेरे इस देश में / शिवकुटी लाल वर्मा

मेरे इस देश में आहों के सिवा
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं
कटी बाहों, कटी टाँगों, कटी राहों के सिवा
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं

मेरे इस देश में क़ातिल तो बहुत मिलते हैं
मगर इस देश को सरसब्ज़ बनाने के लिए
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं

बड़ी उम्मीद, बड़ी आस, काग़ज़ी तहरीरें
मेरे इस देश में शब्दों के सिवा
कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं