मेरे पथ में शूल बिछाकर / नरेन्द्र दीपक
मैं सबको आषीष कहूंगा
मेरे पथ में शूल बिछाकर दूर खड़े मुस्काने वाले
दाता ने सम्बन्धी पूछे, पहिला नाम तुम्हारा लूँगा
आँसू आहें और कराहें
ये सब मेरे अपने ही हैं
चाँदी मेरा मोल लगाए
शुभ चिन्तक ये सपने ही हैं
मेरी अफ़लता की चर्चा घर-घर तक पहुँचाने वाले
वरमाला यदि हाथ लगी तो, इसका श्रेय तुम्हीं को दूँगा
सिर्फ़ उन्हीं का साथी हूँ मैं
जिनकी उम्र सिसकते गुज़री
इसीलिए बस अँधियारे
मेरी बहुत दोस्ती गहरी
मेरे जीवित अरमानों पर हँस-हँस कफ़न उढ़ाने वाले
सिर्फ़ तुम्हारा कर्ज़ चुकाने, एक जनम मैं और जिऊँगा
मैंने चरण धरे जिस पथ पर
वही डगर बदनाम हो गई
मंज़िल का संकेत मिला तो
बीच राह में शाम हो गई
जनम-जनम के साथी बनकर मुझसे नज़र चुराने वाले
चाहे जितने श्राप मुझे दो, मैं सबको आषीष दूँगा।