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मेरे पाँव मुझे पकड़े हैं / केदारनाथ अग्रवाल


मैं चल रहा हूँ
न चलने की गति से
मेरे पाँव मुझे पकड़े हैं
स्वच्छंद रहने के लिए
जकड़े हैं।

रचनाकाल: २८-१२-१९६७