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मेरे मन को / उषा यादव
Kavita Kosh से
चंदा चमके आसमान पर,
मुझसे कहता, चमको।
सूरज भी कहता है हँसकर,
दमको, दमको, दमको।
फूल सभी चुपके से कहते,
महको, महको, महको।
चिड़ियाँ कहतीं चीं-चीं करके,
चहको,चहको, चहको।
बादल कहते दानी बनकर,
खूब ज़ोर से बरसो।
बूँदें कहती छम-छम करके,
नाचो, गाओ, हरसो।
मेरे मन को भाए लेकिन,
तितली बनकर उड़ना।
हैं गुलाब जैसे जो बच्चे,
उनसे सबसे जुड़ना।
उड़ते-उड़ते-उड़ते-उड़ते,
परी लोक तक जाना।
फिर परियों के बच्चों को भी,
अपने यहाँ बुलाना।