मेरे शब्द-मेरे बच्चे / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
मेरे शब्द मुझे सदा प्रिय रहे हैं
इनमें ही मैं इनकी माँ की झलक पाता हूँ
ये मेरे सुख और दुःख को भली-भांति समझते हैं
मेरा हँसना, बोलना, विचार एवं भावनाएँ
कुछ भी नहीं छुपा है उनसे
शायद जानते हैं वे मुझे, मुझसे भी अधिक
जब कभी मैं विचलित, निराश
और अकेला होता हूँ
वो मेरे साथ होते हैं, अश्रुपूरित
बहुत समय बाद एक दिन
एक प्यारे शब्द ने कहा -
"हम जानते हैं कि आप हमारे जनक हैं
पर हमारी माँ कहा हैं
हम उन्हें बहुत याद करते हैं
मिलना चाहते हैं।"
मैंने कहा -
"तुम्हारी उपस्थिति माँ की ही देन है
तुम्हारी प्रेरणा और सम्बन्ध
तुम्हारी सुन्दरता, सुकुमारता और सुशीलता
सभी कुछ माँ की तरह ही है, तभी तो
तुम सब मुझे उसकी तरह अत्यंत प्रिय हो
बहुत कुछ न कर सका
मात्र सहयोग की एक मधुर पीड़ा
बच्चों ने कहा, "अब चलते हैं
अपनी माँ से मिलने।"
आनन्द अतिरेक और माँ के मिलन ने
जैसे उनमें एक नयी स्फूर्ति और उमंग दे दी
सभी गले से लिपट गए
ख़ुशी से झूमते हुए नाचने लगे
कितने समय बाद यह पल मिला था
माँ का मातृत्व और साहचर्य
माँ को पाकर अत्यंत सतुष्ट हुए
तब एक दिन माँ ने कहा-
"अब तुम्हें अपने पिता के पास जाना होगा"
वो लौटना नहीं चाहते थे,
चकित थे, मना कर दिया
अब न जा सकेंगे इस प्रेम सुधा को छोड़।"
माँ ने कहा,- "इस दुनिया की यही रीति है
बच्चे अपने पिता के द्वारा ही जाने जाते हैं
मैं तो एक प्रेरणा का माध्यम ही हूँ
यह सच है कि मैंने तुम्हे जन्म दिया है
पर तुम पर मात्र मेरा ही अधिकार नहीं।"
मेरे शब्द निराशा से भर गए
मेरे पास आकर सब कुछ सुनाया
मुझे बड़ा दुःख हुआ
मैंने अपनी संवेदनाओं को स्वयं से
अधिक प्रेम किया था
लगा जैसे ये सभी मृतप्राय हो गए है
जीवन के कोई लक्ष्ण ही शेष न रहे
आँखों से अश्रुधारा फूट पड़ी, मेरी आँखों
के समक्ष मेरे निष्प्राण शिशु।
स्तब्ध गहरी सम्वेदना में असहाय शब्द
मैंने कहा, "मेरे बच्चों
अब आजाद हो जाओ निराशा से
सदा के लिए बन्धनों से मुक्त
पर, मै अब भी बँधा हुआ हूँ
शायद! मुक्त न हो सकूँगा
मुझे अब भी तुम्हारी माँ से
उतना ही प्रेम है
क्योंकि वह मेरे जीवन की प्रेरणा है
तुम इसे मानो या न मानो
यह सत्य है, यही सत्य है