भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे शहर के पाटे- 4 / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
छोटी गलियों में
टेढ़े-मेढ़े रास्तों में
बड़े-बड़े चौक और मौहल्लों में
जिधर से भी आओगे
हर जगह मिलेगें ये
मजबूत पाटे
इन पर तुम बैठो तो सही
मनों की दीवारों को तोड़ते
मन को जोड़ते
भूल जाओगे कारगिल
तारबंदियां
एक ही आकार लेगा
इन पाटो पर विश्वास
ये पाटे मेेरे शहर के पाटे