भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे सामने चलता हुआ वह आदमी / लाल्टू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे सामने चलता हुआ वह आदमी
बड़बड़ाता हुआ किसी से कुछ कह रहा है
अपनी बड़बड़ाहट और कान में बँधी तार में से आती कोई और आवाज़ के बीच
मेरे पैरों की आवाज़ सुनकर चौंक गया है और उसने झट से पीछे मुड़कर देखा है
मुझे देख कर वह आश्‍वस्‍त हुआ है
और वापस मुड़कर अपनी बड़बड़ाहट में व्‍यस्‍त हो गया है।
मैं मान रहा हूँ कि उसने मुझे सभ्‍य या निहायत ही कोई अदना घोषित किया है खुद से
जब मैं सोच रहा हूँ कि रात के तकरीबन ग्‍यारह बजे
उसकी बड़बड़ाहट में नहीं है कोई होना चाहिए प्रेमालाप
और है नहीं होना चाहिए बातचीत इम्‍तहानों गाइड बुकों के बारे में

उसकी रंगीन निकर की ओर मेरी नज़र जाती है
मैं सोचता हूँ उसकी निकर गंदी सी होती तो
उसके कान में तार से न बँधी होती बड़बड़ाहट
और उसकी आवाज़ होती बुदबुदाहट कोई गाली सही
पर प्‍यार होने की संभावना प्रबल थी

शाम का वह आदमी सुबह के एक एक्‍सीडेंट हो
चुके आदमी में बदल गया है
और इस वक़्‍त आधुनिक वाकर टाइप की बैसाखी
साइड में रख दीवार के सामने खड़ा हो पेशाब कर रहा है।