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मेरे हिस्से की दोपहर / योगेंद्र कृष्णा

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बंट रहे थे जब सारे पहर
बंट रही थीं जब
रोमांचक रातें
शबनम में नहायी
खुशनुमा सहर

मेरे हिस्से आई
बस गर्मियों की लंबी
चिलचिलाती दोपहर...