भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेळो / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
टाबरिया नै भावै मेळो
झालो दै‘र बुलावै मेळो।
खेल तमासा खील पतासा
झुंझणिया ले आवै मेळो
लोग-लुगाई टाबर सैं‘नै
सालो-साल बुलावै मेळो।
भांत-भांत री सरकस आवै
बांदर-भालू खेल दिखावै
जोकर हांसै और हंसावै
हींडा खूब हींडावै मेळो।
ढ़ोल ढ़माका मेळौ ल्यावै
अळगोजां री राग सुणावै
टाबरियां रो जी बिलमावै
मेळ-मिळाप करावै मेळो।
गीत गांवता जातरी आवै
देई-देव री धोक लगावै
नारेळ धजा परसाद चढ़ावै
मिनखा नै हरखावै मेळो।
टाबरियां नै भावै मेळो।
झालो दे‘र बुलावै मेळो।