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मैं / एकांत श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मैं गेहूँ का पका खेत हूँ
चिडियो! मुझे चुग लो
मैं वीरान जंगल का झरना हूँ
मुसाफिर! मुझमें नहा लो
मैं आषाढ़ का पानी हूँ
पहाड़ो! मुझे गिरा दो
मैं खलिहान का बुझा हुआ दिया हूँ
माँ! मुझे जला दो
मैं जल में सोया संगीत हूँ
पवन! मुझे जगा दो
मैं क्रोध का ठंडा पत्थर हूँ
सूर्य! मुझे तपा दो।