Last modified on 16 दिसम्बर 2010, at 23:12

मैं एक बार फिर आऊँगा / मनोज छाबड़ा

मैं एक बार फिर आऊँगा
और
पतझड़ों को समेटने का प्रयास करूँगा
सूखे फूलों को चटखाऊँगा एक बार फिर
गर्म दुपहरी में
विश्व पर तानूँगा छाता
थोड़ा धान उगाऊँगा
थोड़ी गेहूं

बच्चों के लिए खरीदूँगा
पुस्तकें और सफ़ेद कागज़
दूँगा उन्हें
जल-रंग ब्रुश

मैं नहीं तो
कम-से-कम वे ही
रंगों से भर दें
मटमैली और उदास दुनिया को