भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं गोया हूँ / अन्द्रेय वज़निसेंस्की / श्रीकान्त वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं गोया हूँ
बर्बर युद्धक्षेत्र का जब तक दुश्मन की नोकीली चोंच
मेरी आँखों को न चींथ कर बाहर कर दे तब तक
मैं दुख हूँ

मैं युद्धोन्मुख हूँ
’41 के बर्फ़ीले अन्धड़ में
बुझे जा रहे अंगारों-से नगर
भूख हूँ

मैं उस औरत की
गरदन हूँ, सूली पर लटकाई जाकर सूने चौरस्ते
जिसका शव
घण्टे-जैसा झूल रहा है
मैं गोया हूँ


ओ शापों की वर्षा !
घुस आए मेहमानों के अवशेष
         फेंककर अस्ताचल में
ठोंक दिए हैं मैंने हरदम — आसमान पर
तारे — जैसे कील
मैं गोया हूँ ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीकांत वर्मा

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए
                    Andrei Voznesensky
                          I am Goya...

I am Goya
of the bare field, by the enemy’s beak gouged
till the craters of my eyes gape
I am grief

I am the tongue
of war, the embers of cities
on the snows of the year 1941
I am hunger

I am the gullet
of a woman hanged whose body like a bell
tolled over a blank square
I am Goya

O grapes of wrath!
I have hurled westward
the ashes of the uninvited guest!
and hammered stars into the unforgetting sky – like nails

I am Goya

Translated by Stanley Kunitz

और अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
             Андрей Вознесенский
                           Гойя

Я — Гойя!
Глазницы воронок мне выклевал ворон,
слетая на поле нагое.Я — Горе.Я — голос
Войны, городов головни
на снегу сорок первого года.Я — Голод.Я — горло
Повешенной бабы, чье тело, как колокол,
било над площадью голой… Я — Гойя! О, грозди
Возмездья! Взвил залпом на Запад —
я пепел незваного гостя!
И в мемориальное небо вбил крепкие звезды —
Как гвозди.Я — Гойя.