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मैं घोड़ों की दौड़... / केदारनाथ अग्रवाल
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मैं घोड़ों की दौड़
- वनों के सिर पर तड़-तड़ दौड़ा,
पेड़ बड़े से बड़ा
- चिरौंटे-सा चिल्लाया चौंका,
पत्तों के पर फड़-फड़ फड़के--
- उलटे, उखड़े, टूटे,
मौन अंधेरे की डालों पर
- सांड पठारी छूटे !