मैं भारत गुण-गौरव गाता !
श्रद्धा से उसके कण-कण को
उन्नत माथा नवाता ।
प्रथम स्वप्न-सा आदि पुरातन,
नव आशाओं से नवीनतम,
प्राणाहुतियों से युग-युग की
चिर अजेय बलदाता !
आर्य शौर्य धृति, बौद्ध शांति द्युति,
यवन कला स्मिति, प्राच्य कर्म रति,
अमर अमित प्रतिभायुत भारत
चिर रहस्य, चिर-ज्ञाता !
वह भविष्य का प्रेम-सूत है,
इतिहासों का मर्म पूत है,
अखिल राष्ट्र का श्रम, संयम, तप:
कर्मजयी, युग त्राता !
मैं भारत गुण-गौरव गाता।
( १९३३ में लिखित )