वाम नहीं, दाहिना नहीं हूँ, मैं सम्पूर्ण विरासत हूँ।
लोगों को जो बांट-बांट दे, वैसी नहीं सियासत हूँ।
मैं ऋक् हूँ, मैं सामवेद हूँ, मैं गीता का सत्य वचन,
चार्वाक का चिन्तन हूँ मैं, विश्वामित्र-नवल सिरजन,
गौतम-गांधी सब पनपे हैं, सबके लिए रियासत हूँ।
कालीदास का रघुवंशम् हूँ, मैं कुमारसंभव उनका,
पिटक-ग्रंथ, कबिराहा हूँ मैं, नानक-पंथी हूँ सबका,
तुलसी की मैं विनयपत्रिका, रहिमन सहित इबादत हूँ।
मंदिर में पूजा करता हूँ, मस्जिद ढिग सिर झुकता है,
चला आ रहा लाखों-बरसों, कहाँ कारवां रुकता है,
मैं भारत हूँ, विश्व हमारा, सबके लिए सलामत हूँ!
सभी रहें सम्पूर्ण शांति से, सबका हो कल्याण यहाँ
यह धरती का स्वर्ग हमारा, बसते सबके प्राण जहाँ,
उच्छृंखल हैं, विशृंखल हैं, उनके लिए हिदायत हूँ।