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मैं शर्मिंदा हूँ अंतिम बाला / पंकज सुबीर

मैं शर्मिंदा हूँ अंतिम बाला
मैं सचमुच बहुत शर्मिंदा हूँ।
शर्मिंदा हूँ तुमसे,
जबकि तुम मेरे आसपास भी नहीं हो,
और मैं यह भी नहीं जानता कि तुम कहाँ हो
फिर भी मैं शर्मिंदा हूँ तुमसे,
और चाहता हूँ कि तुम से मेरा कहीं सामना न हो जाए।
मुझे आज भी याद है बचपन की,
जब मेरे घर के पीछे नागफनी की झाड़ियों में
पहली बार हल्के प्याज़ी-सिंदूरी से छोटे-छोटे फूल खिले थे,
मैं जानता था उन फूलों को पाने की तुम्हारी चाहत के बारे में,
तुम उन कँटीली झाड़ियों में खिले रेशमी फूलों को
मुट्ठी में भरना चाहती थीं,
और शायद इसीलिए तुमने मेरा सौदा मंज़ूर कर लिया था।
उन प्याज़ी-सिंदूरी फूलों के बदले
तुम्हारा उस समय का सर्वस्व,
अर्थात् माचिस की एक ख़ाली डिबिया में रखा
प्लास्टिक का बैंगनी फूल, एक सुनहरा मोती
और किसी राखी पर से उखाड़ी गई जय संतोषी माँ की तस्वीर;
तुमने अपना उस समय का ये सर्वस्व मुझे सौंप दिया था,
मैं जानता था कि तुम्हें यह चीज़ें सबसे ज़्यादा प्यारी हैं,
और शायद इसीलिए मैं उन चीज़ों को ही पाना चाहता था,
पुरुष जो था ।
फिर तुम चली गईं अंतिम बाला
और मेरे पास रखा रह गया तुम्हारा वह सर्वस्व।
फिर मेरे जीवन में कई बार नागफनियाँ फूलीं
और उन फूलों के भी मैंने कई सौदे किये,
पुरुष जो था।
लेकिन उन सर्वस्वों को प्राप्त करके भी
उन्हें अपने पास रख नहीं पाया ।
वे मुट्ठी में बंद धुँए की तरह फिसल गए।
जो रखा रहा वह था तुम्हारा सर्वस्व
मैं चाहता था उसे तुम्हें लौटाना, एक कविता के रूप में,
क्योंकि नागफनी के फूलों पर मेरा कोई अधिकार नहीं था,
पर तुम्हारे उस छोटे-से सर्वस्व पर तो तुम्हारा
और केवल तुम्हारा ही अधिकार था,
इसीलिए मैं चाहता था
तुम्हारे उस सर्वस्व को कविता का रूप देकर तुम्हें लौटाना ।
पर मैं शर्मिंदा हूँ अंतिम बाला कि मैं ऐसा कर ना सका।
मैं ऐसा करता भी कैसे?
कौन पढ़ता उस बैंगनी फूल के बारे में,
उस सुनहरी मोती के बारे में,
या फिर उस जय संतोषी मां की तस्वीर के बारे में,
जिसे रक्षा बंधन के दूसरे दिन,
बड़ी मशक्कत के बाद प्राप्त कर
माचिस की उस ख़ाली डिबिया में सहेजा गया था ।
कोई नहीं पढ़ता उस कविता को,
तुम्हारा वो सर्वस्व आज भी मेरे पास रखा है,
अब मैं उसे लौटा भी नहीं सकता,
क्योंकि समय के साथ सर्वस्व के मायने भी बदल जाते हैं।
आज उस माचिस की डिबिया की तुम्हारे लिए कोई अहमियत न हो,
या अगर हो भी,
तो भी वो कम से कम तुम्हारा सर्वस्व तो नहीं हो सकती,
ऐसे में आज उसको वापस लौटाने का कोई औचित्य नहीं है।
इसीलिए मैं उसे कविता में ढाल देना चाहता था था,
ताकि कम से कम कुछ तो तुम्हें लौटा सकूँ।
यही सोच कर कई बार लिखने भी बैठा,
लेकिन जब भी मैंने लिखना चाहा,
ठीक उसी समय घर के पीछे नागफनी फूल उठी
और फिर कोई चला आया उन फूलों की तलाश में,
मैं कुछ न लिख सका।
लिखने से ज़्यादा सौदे महत्त्वपूर्ण थे मेरे लिए।
मैं नहीं जानता तुम कहाँ हो, कैसी हो और किसकी हो,
मैं बस इतना जानता हूँ,
की माचिस की डिबिया में बंद
तुम्हारा वह तत्कालीन सर्वस्व,
जिसे मैंने एक ग़लत सौदा करके हथिया लिया था,
वह आज भी मेरे पास रखा है
मैं किसी भी रूप में उसे वापस तुम्हें नहीं लौटा पाया।
मैं शर्मिंदा हूँ अंतिम बाला
मैं सचमुच बहुत शर्मिंदा हूँ अंतिम बाला।