♦ रचनाकार: अज्ञात
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मैं हूर परी बाँगर की, मन्ने फली खा लई सांगर की!
मेरी के बूझे भरतार
म्हने छोड़ न जइए, अपना कपटी दिल समझइए
ओ भर बुरा बनियाँ से प्यार
भावार्थ
--' मैं बाँगर की हूर हूँ । एकदम परी सरीखी लगती हूँ । मैं सींगरे की फलियाँ खा- खा कर पली हूँ । प्रियतम,
आख़िर मुझे क्या समझते हो तुम ? मुझे छोड़ कर न जाओ, प्रिय। इस कपटी दिल को अपने समझाओ, प्रिय ।
ओ देखो न, तुम्हारे प्रति मेरे मन में बुरी तरह से प्यार जाग रहा है ।