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मोबाइल जी! / नागेश पांडेय 'संजय'
Kavita Kosh से
मोबाइल जी! सचमुच तुम हो
बड़े काम की चीज।
गेम, कैमरा, कैल्कुलेटर,
एफ.एम., इंटरनेट,
कंप्यूटर भी इसमें आया
फिर भी सस्ता रेट।
एक टिकट में कई तमाशे
वाली तुम टाकीज।
यों थी दुनिया बहुत बड़ी
तुमने कर दी छोटी।
जाल हर कही फैला है,
क्या खूब चली गोटी।
सबके प्यारे हुए अचानक,
कैसे, बोलो प्लीज!
जहाँ कही भी जाता, तुमको
हरदम रखता साथ।
चिट्ठी का क्या काम, कि फौरन
हो जाती है बात।
लेकिन ‘विजी’ बोलते हो जब,
तो उठती है खीझ।