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मोमाखी / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आक गुलाब मिनख रै मान्या
कद मोमाखी मानै ?
आं में सै में लुक्यै सैत नै
ईं री दीठ पीछाणै।
रंग रूप सौरम रै बेड़ी
मिनख नांव री घाली,
पण निज रै ही खण्यै खाड में
पड्ग्यो खा’र भुंआळी,
अरथ भूल अनरथ में रमग्यो
स्याणो बणै धिंगाणै।
आक गुलाब मिनख रै मान्या
कद मोमाखी मानै ?
तथ रो इस्यो सभाव, ढक्योड़ो
रहसी परदां लारै,
ओ ही एक अनेक बणै जद
माटी रो तण धारै,
पण कुदरत री ई फाकी नै
मोमाखी तो जाणै।
आक गुलाब मिनख रै मान्या
कद मोमाखी मानै ?
रंग रूप नै भूल, नेम स्यूं
सार रूप नै संचै,
जाण पारखी खुद फुलड़ां रो
हिवड़ो हेत अंलूचै,
जको सोधसी सदा पूगसी
सागी ठौड़ ठिकाणैं।
आक गुलाब मिनख रै मान्या
कद मोमाखी मानै ?