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मोहन मेरे मन को चोर / स्वामी सनातनदेव

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राग भूपाल तोड़ी, तीन ताल 17.9.1974

मोहन मेरे मन को चोर।
हा-हा खाऊँ तदपि न मानहि, करत बहुत बरजोर॥
बरजोरी हूँ लगत निहोरी, मन में उठत मरोर।
मेरे रोके रुकत न सजनी! जात स्याम की ओर॥1॥
रह्यौ न चित्त वित्त अब मेरो, लीन्हों नवल किसोर।
भई बिना मन की मैं आली! बँधी प्रीतिकी डोर॥2॥
मोहन को मन है मेरो मन, फिरूँ मनहुँ चक-डोर।
जैसे चाहें मोहिं नचावें, सूत्रधार वे मोर॥3॥

शब्दार्थ
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