मोहे टी.वी. मँगाय दे / प्रतिभा सक्सेना
मोहे टी.वी. मँगाय दे मैं टिविया पे राजी!
जा पै होइ रँगवारो टीवी करौं ओही से सादी!
काला और सुपेद न भावै,टीवी बस रंगवारो,
बिना रँगन को मजा न आवे तुमहू नेक विचारो!
छैल-छबीली फर्वट छोरी दो करवाय मुनादी
मरद चलेगा लंबा-नाटा काला-गोरा कोई,
मोटा पातर,मूँछ-निमूछा फरक पड़े ना कोई!
दिन भर बाहर रहै मरद,रौनक टीवी से हाँ,जी!
बंदर जैसा हो कोई, जा की महरारू सुन्दर,
हर देखैवाले के हिय मां हूक उठै रह रह कर!
सरत लगा ले कोई चाहे,हौं ही जितिहौं बाजी!
पढ़ी-लिखी तो नहीं खास पर समझूँ ढाई आखर,
उइसे ही सब कहें सयानी,का होई पोथी पढ़
ज्यादा पढी-लिखी छोरी तो लगे सभी की दादी!
जइस खुदा जी खुदै देत सक्कर खोरेन का सक्कर,
हमरा भी हुइ जाई कलर टीवी वाले सों चक्कर
टी.वी.वाला राजी तो फिन का कर लेई काजी!