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मौन हिरदय / सरवन बख्तावर
Kavita Kosh से
उ तो बोलत गैल, ऐसन बोली जैसे तीर के समान,
हिरदय से हमार कोई बात ना निकरल, रह गैल हिरदय मौन
पीर और दरद सहा ना गैल, अँखियाँ से दुई बूँद आँसू भी चुई गैल
सोच तो बस इतना भैल,
काहे हमके ना मिलल ओकर साथ?
जेके हिरदय में बसैली, ओही ना समझिस हिरदय के बात?
पर तसल्ली मिलल सोच के,
ओहमन ओकर कसूर कौन,
जब हिरदय ही हरदम रहत गैल मौन
मौन रहके भी बोलिस हिरदय सब बात,
हमहू ना समझ पैली, सोचत रह गैली दिन-रात।