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यही मैं हूँ / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
यही मैं हूँ
और जब मैं यही होता हूँ
थका, या उन्हीं के से वस्त्र पहने, जो मुझे प्रिय हैं-
दुखी मन में उतर आती है पिता की छवि
अभी तक जिन्हें कष्टों से नहीं निष्कृति
उन्हीं अपने पिता की मैं अनुकृति हूँ
यही मैं हूँ।