यह कैसी अनहोनी मालिक
यह कैसा संयोग |
कैसी -कैसी कुर्सी पर हैं
कैसे -कैसे लोग |
जिनको आगे होना था
वो पीछे छूट गये
जितने पानीदार थे शीशे
तड़ से टूट गये
प्रेमचन्द से मुक्तिबोध से
कहो निराला से
कलम बेचने वाले अब हैं
करते छप्पन भोग |
हँस -हँस कालिख बोने वाले
चांदी काट रहे
हल की मूठ पकड़ने वाले
जूठन चाट रहे
जाने वाले जाते -जाते
सब कुछ झाड़ गये
भुतहे घर में छोड़ गये हैं
सौ -सौ छुतहे रोग |
धोने वाले हाथ धो रहे
बहती गंगा में
अपने मन का सौदा करते
कर्फ्यू दंगा में
मिनटों में मैदान बनाते हैं
आबादी को
लाठी ,आँसू गैस पुलिस का
करते जहाँ प्रयोग |