मोहरे वही, बिसात भी वही, खिलाड़ी भी
यह कैसे हुआ मीत, शतरंजी जीवन में
जीत गई एक चाल, एक चाल हार गई?
भोर हुई धरती पर बिख़र गया सोना सा
अनहोना हुआ किया किसने यह टोना-सा
घाटी में, चोटी पर खेल रहा कूद-कूद
बादल का टुकड़ा यह लगता रहा मृगछोना सा।
कमलों की आंख खुली, निशिगंधा मुरझा गई
यह कैसे हुआ मीत, सूरज की वही किरन
एक को उजाड़ गई, एक को संवार गई?
वैसे ही साधन थे, एक-सा सुभीता था
दो गोताखोरों का समय साथ बीता था
साथ-साथ डूबे वे, साथ-साथ उभरे पर
एक हाथ था मोती, एक हाथ रीता था।
सिंधु वही धार वही, मांझी पतवार वही
यह कैसे हुआ मीत, एक लहर नौका को
गहरे में डुबो गई, दूसरी उबार गई?
यह कैसी छलना है, यह किसकी क्रीड़ा है
एक नयन आंसू है, एक नयन व्रीडा है
एक प्यार तड़पन है, एक प्यार गायन है
एक याद पुलकन है, एक याद पीड़ा है।
कल तक जो मलयवात मिलने की बेला में
चंदन बिखराती थी, यह कैसे हुआ मीत
आज वही सूने में, ताना-सा मार गई?
हम सब कठपुतली है हाए, नहीं सूत्रधार?
भटके से फिरते हैं खटकाते द्वार द्वार
जो कुछ भी होना है भाल पर लिखा है यदि
फिर कैसी दौड़ धूप, फिर कैसी जीत-हार??
परवशता मात्र सत्य, शेष अगर मिथ्या है
यह कैसे हुआ मीत, एक तृषा चुपके से
जीवन की दुल्हन को फिर भी मनुहार गई?
मोहरे वही, बिसात भी वही, खिलाड़ी भी,
यह कैसे हुआ मीत, शतरंजी जीवन में
जीत गई एक चाल, एक चाल हार गई?