यह जो शाम सिंदूरी है
सूरज की मजबूरी है
तेरी आदत है मुस्कान
अपनी तो मजबूरी है
और हिरन का जीवन बस
जितने दिन कस्तूरी है
दौलत या इज्जत ले लूँ
लेकिन कौन जरूरी है
आखिर कब मिट पाएगी
हम तुम में जो दूरी है
दफ्तर-दफ्तर है राइज
वह शै जो दस्तूरी है
सबके लिबासों में सर्वत
खुशबू क्यों काफूरी है?