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यह नाव / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
यह समुद्र में चलने वाली नाव
कितनी सुन्दर लगती है
पाल के सहारे हवाओं पर विजय पाती है
और पतवार के सहारे जल पर
खेद है मुझे
तुममें बैठा हुआ कोई आदमी नहीं दिखता
इतनी दूरी से
जैसे अपने आप कोई चीज चल रही हो
शायद इसी तरह चलता होगा समुद्र
और साथ-साथ इसके ये हवाएँ।